क्या कारण था कि उन्नीसवीं शताब्दी के अंत तक आते-आते 'नरमदलीय' अपनी घोषित विचारधारा तथा राजनीतिक लक्ष्यों के प्रति राष्ट्र के विश्वास को जगाने में असफल हो गए थे? (150 शब्द)
उत्तरः 19वीं शताब्दी के मध्य से ही भारत में राजनीतिक चेतना के नए युग की शुरुआत हो गई थी, किंतु इसे संस्थागत स्वरूप कॉन्ग्रेस की स्थापना के बाद मिला। कॉन्ग्रेस के आरंभिक 20 वर्षों को 'नरम दलीय ' दौर के नाम से जाना जाता है।
नरमदलीय विचारधारा के नेता ब्रिटिश विरोधी नहीं थे। उनका मानना था कि यदि वे अहिंसक तथा संवैधानिक तरीके से अपनी मांगों को सरकार के सामने रखेंगे तो उनकी न्यायोचित मांगों को अवश्य मान लिया जाएगा।
उनके राजनीतिक लक्ष्य थे- प्रशासन में भारतीयों की भागीदारी को बढ़ाना, विधानसभाओं को ज़्यादा अधिकार दिलवाना, विधानसभाओं के सदस्यों को निर्वाचित करके विधानसभाओं को प्रतिनिधि संस्थाएँ बनाना, जिन प्रांतों में विधानसभाएँ नहीं हैं वहाँ इनकी स्थापना किया जाना, भू-राजस्व में कमी किया जाना तथा भारतीय धन के बहिर्गमन को रोका जाना इत्यादि ।
कॉन्ग्रेस की अपेक्षाओं के विपरीत ब्रिटिश सरकार ने कॉन्ग्रेस की मांगों पर कोई ध्यान नहीं दिया। 1892 के एक्ट से भी भारतीय जनता को निराशा मिली। 19वीं सदी के अंत तक ब्रिटिश सरकार ने खुली घोषणा की कि भारतीय किसी भी महत्त्वपूर्ण पद के योग्य नहीं हैं।
यद्यपि नरमदलीय मांगों को सरकार ने नहीं माना तथा गरमदलीय नेताओं ने उनकी नीति को अनुनय-विनय की नीति कहकर उनकी आलोचना भी की, तथापि इस तथ्य से इनकार नहीं किया जा सकता कि आरंभिक 20 वर्षों में कॉन्ग्रेस ने लोगों को एक व्यापक राष्ट्रीय उद्देश्य के लिये एकजुट किया जिससे क्रमबद्ध राजनीतिक विकास की शुरुआत हुई।
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