प्रश्न- आप इस विचार को, कि गुप्तकालीन सिक्काशास्त्रीय कला की उत्कृष्टता का स्तर बाद के समय में नितांत दर्शनीय नहीं है, किस प्रकार सही सिद्ध करेंगे? (150 शब्द )
उत्तर: सिक्कों में प्रयुक्त धातु, सिक्के का आकार और स्वरूप, सिक्कों की माप, निर्माण विधि सिक्काशास्त्र के विभिन्न पहलू हैं। चूँकि सिक्के राजकीय संवाद के वाहक होते हैं। अतः इतिहास लेखन में इनका महत्त्वपूर्ण स्थान है।
गुप्तकालीन राजाओं ने सोने, चांदी, तांबे, काँसे तथा मिश्रधातु के विभिन्न आकार के सिक्के चलाए जिन पर राजाओं ने अपनी रुचि के अनुसार आकृतियाँ (राजा-रानी प्रकार, धनुर्धारी तथा वीणावादन प्रकार) अंकित कराईं। इन सिक्कों पर हिंदू पौराणिक परंपराओं को भी दर्शाया गया। सिक्कों पर उत्कीर्ण किवदंतियाँ इस काल की कलात्मक उत्कृष्टता की उदाहरण हैं।
लेकिन गुप्तोत्तर काल में जहाँ एक ओर सिक्कों के उपयोग में कमी आई, वहीं इनमें मौलिकता तथा कलात्मकता का अभाव भी देखने को मिलता है। माप में भी गुप्तकालीन सिक्कों की अपेक्षा बाद के काल के सिक्कों में गिरावट देखने को मिलती है। मुद्राओं में निर्गत करने वाले राजाओं के नाम का भी उल्लेख नहीं मिलता है। व्यापार में गिरावट के साथ ही निम्न कोटि की मिश्रधातु के बने सिक्कों का प्रचलन बढ़ा।
अतः जिस प्रकार की विविधता, कलात्मकता तथा गुणवत्ता हमें गुप्तकालीन सिक्कों में देखने को मिलती है बाद के कालों में उसका अभाव देखने को मिलता है।
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