सब तो नहीं, लेकिन सब में अधिकांश एक ही काल चक्र में फंसे हैं। डर सा लगने लगता है। लगता है इस बार भी न हो पाएगा। लेकिन कार्य तो करना ही है।
पिछली बार तो भूल हो गई थी। इसलिए वेबसाइट के पन्नों पर अपना नाम, रॉल नंबर न मिला। मिला होता तो अगले चक्र की लड़ाई लड़ने की तैयारी में लग जाते।
इस बार फिर वहीं से शुरुआत करनी पड़ रही है जहां से पिछली बार की शुरुआत हुई थी। इस बार विजय पा लेना है। लेकिन क्या पिछली बार की कमियों पर विजय पा लिया है? एक घण्टे का भी समय खर्च किया है इस पर ? आत्ममूल्यांकन किया क्या ?
इस बार खुद को पहले से बेहतर बनाना है। बेहतर तभी बन सकते हैं जब आपसे बेहतर का हाथ आपके साथ होगा। उन छोड़ देना होगा जिनके कारण पिछली बार बेहतर नहीं बन पाए। आगे बेहतर होने के लिए पिछले बेहतर से बेहतर का साथ लेना होगा।
कार्य-कारण नियम से ही व्याख्या करने का प्रयास है। प्रयास की सार्थकता होनी चाहिए। नहीं तो बीत जाएगी यह ज़िंदगी पढ़ने में, कि पढ़ना क्या है ?
मजबूत इरादों से सब कुछ संभव है। बोझिल मन से बोझिल जीवन ही बनेगा । हताशाओं से आगे बढ़ना होगा। एक खिड़की बनानी होगी जहां से उजाला दिखता रहे। बस डर से बाहर निकलना होगा।
PRASHANT KUMAR
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