- इलेक्टोरल बॉण्ड एक वित्तीय प्रपत्र है जो राजनीतिक पार्टियों को चंदा देने के लिये प्रयुक्त किया जाता है।
- 2017-18 के बजट में पहली बार इसकी घोषणा की गई ताकि नागरिक एक वैकल्पिक तरीके से राजनीतिक दलों को चंदा दे सकें। इसके लिये नी RBI एक्ट, 1934 और आयकर अधिनियम, 1961 में संशोधन करना आवश्यक हो गया।
- ये बॉण्ड अधिसूचित बैंक द्वारा जारी किये जाएंगे।
- इन बॉण्डों को केवल चेक या डिजिटल माध्यमों द्वारा ही खरीदा जा सकता है, नकद भुगतान देकर नहीं ।
- केवल पंजीकृत राजनीतिक दलों को ही ये बॉण्ड किसी व्यक्ति द्वारा चंदे के रूप में दिये जा सकेंगे। फिर वे पार्टियाँ इन बॉण्डों को अपने निर्दिष्ट बैंक एकाउण्ट में निश्चित समय-सीमा के भीतर रुपए में बदल सकेंगी।
- इन बॉण्डों के दाता की पहचान केवल बैंक के पास रहेगी, राजनीतिक पार्टियों या वोटरों के पास नहीं ।
- इन बॉण्डों से न तो टैक्स में कोई रियायत मिलेगी और न ही किसी प्रकार का ब्याज ही मिलेगा।
- इलेक्टोरल बॉण्ड चुनाव फंडिंग को पारदर्शी और स्वच्छ बनाने का एक प्रयास है।
क्या है कॉलेजियम सिस्टम देश के उच्चतर न्यायालयों में जजों की नियुक्ति, पदोन्नति और स्थानांतरण की वर्तमान प्रणाली को कॉलेजियम सिस्टम कहा जाता है। दरअसल कॉलेजियम 5 न्यायाधीशों का समूह है जिसमें भारत के मुख्य न्यायाधीश के अलावे सर्वोच्च न्यायालय के 4 वरिष्ठ न्यायाधीश शामिल होते हैं। सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के नेतृत्व में बनी वरिष्ठ जजों की यह समिति उच्चतर न्यायालयों में जजों की नियुक्ति, पदोन्नति और स्थानांतरण संबंधी फैसले लेती है और राष्ट्रपति के अनुमति के लिए भेज देती है। यह ध्यान रखना आवश्यक है कि कॉलेजियम सिस्टम द्वारा जजों की नियुक्ति का प्रावधान संविधान में कहीं नहीं है। राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग (NJAC) संसद ने सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालयों में न्यायाधीशों की नियुक्ति और स्थानांतरण के लिए राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग अधिनियम बनाया था। इस आयोग की अध्यक्षता भारत के मुख्य न्यायाधीश को करनी थी। इसके अलावे सर्वोच्च न्यायालय के ही दो वरिष्ठ न्यायाधीश, केंद्रीय विधि मंत्री और दो प्रतिष्ठित व्यक्ति भी इस आयोग का हिस्सा होते। आय...
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