क्या है कॉलेजियम सिस्टम
देश के उच्चतर न्यायालयों में जजों की नियुक्ति, पदोन्नति और स्थानांतरण की वर्तमान प्रणाली को कॉलेजियम सिस्टम कहा जाता है।
दरअसल कॉलेजियम 5 न्यायाधीशों का समूह है जिसमें भारत के मुख्य न्यायाधीश के अलावे सर्वोच्च न्यायालय के 4 वरिष्ठ न्यायाधीश शामिल होते हैं।
सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के नेतृत्व में बनी वरिष्ठ जजों की यह समिति उच्चतर न्यायालयों में जजों की नियुक्ति, पदोन्नति और स्थानांतरण संबंधी फैसले लेती है और राष्ट्रपति के अनुमति के लिए भेज देती है।
यह ध्यान रखना आवश्यक है कि कॉलेजियम सिस्टम द्वारा जजों की नियुक्ति का प्रावधान संविधान में कहीं नहीं है।
राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग (NJAC)
संसद ने सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालयों में न्यायाधीशों की नियुक्ति और स्थानांतरण के लिए राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग अधिनियम बनाया था।
इस आयोग की अध्यक्षता भारत के मुख्य न्यायाधीश को करनी थी। इसके अलावे सर्वोच्च न्यायालय के ही दो वरिष्ठ न्यायाधीश, केंद्रीय विधि मंत्री और दो प्रतिष्ठित व्यक्ति भी इस आयोग का हिस्सा होते।
आयोग में इन दो हस्तियों का चयन तीन सदस्यीय समिति को करना था, जिसमें प्रधानमंत्री, मुख्य न्यायाधीश और लोकसभा में नेता विपक्ष या सबसे बड़े विपक्षी दल के नेता शामिल थे।
आयोग से संबंधित एक महत्वपूर्ण बात यह थी कि अगर आयोग के कोई भी दो सदस्य किसी व्यक्ति की नियुक्ति पर सहमत नहीं होते तो आयोग उस व्यक्ति की नियुक्ति की सिफारिश राष्ट्रपति को नहीं भेजता।
राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग अधिनियम को सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती दी गई। न्यायालय ने इस अधिनियम को यह कहते हुए असंवैधानिक करार दिया कि अपने वर्तमान स्वरूप में न्यायपालिका के कामकाज में मात्र है और इस तरह न्यायपालिका की स्वतंत्रता को नष्ट करने वाला है।
आवश्यकता क्यों पड़ी
न्यायपालिका में कॉलेजियम सिस्टम को लेकर प्रायः सवाल उठते रहे हैं। कॉलेजियम व्यवस्था को लेकर विवाद इसलिए है क्योंकि इसमें न्यायपालिका स्वयं ही अपने सदस्यों की नियुक्ति करती है। यह प्राकृतिक न्याय के सिद्धांत के विरुद्ध है और भारत संभवतः अकेला ऐसा लोकतांत्रिक देश है जहां कॉलेजियम व्यवस्था लागू है।
न्यायपालिका में पारदर्शिता सुनिश्चित करने के उद्देश्य से।
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