Skip to main content

UPSC Mains मध्य अठारहवीं शताब्दी का भारत विखंडित राज्यतंत्र की छाया

 प्रश्न- सुस्पष्ट कीजिये कि मध्य अठारहवीं शताब्दी का भारत विखंडित राज्यतंत्र की छाया से किस प्रकार ग्रसित था। (150 शब्द)

उत्तर: मध्यकाल में मुगलों द्वारा लगभग समूचे देश को एक सूत्र में बांध दिया गया था, जिसके परिणामस्वरूप भारतीय साम्राज्य अठारहवीं शताब्दी के प्रारंभ तक स्थिर बना रहा, किंतु औरंगज़ेब की मृत्यु के बाद मुगल साम्राज्य तेज़ी से बिखरने लगा और अठारहवीं शताब्दी के मध्य तक आते-आते देश क्षेत्रीय राज्यों में बँट गया।

बंगाल में मुर्शिद कुली खाँ और उसके उत्तराधिकारियों, हैदराबाद में चिन किलिच खाँ तथा अवध में सआदत खाँ के नेतृत्व में स्वतंत्र क्षेत्रीय राज्यों की स्थापना हुई। ये क्षेत्रीय राज्य मुगल केंद्रीय सत्ता की क्षीण होती शक्ति के परिणामस्वरूप उभरकर आए। यही नहीं, अठारहवीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में भी कर्नाटक और मैसूर जैसी क्षेत्रीय शक्तियों का उदय हुआ। कर्नाटक धीरे-धीरे मुगल सूबेदारों के कब्ज़े से निकल गया था और 1761 में हैदर अली ने मैसूर के राजा से गद्दी छीनकर राज्य पर अधिकार कर लिया। 

इन क्षेत्रीय शक्तियों के उभरने में अंग्रेज़ों तथा अन्य यूरोपीय शक्तियों के आपसी संघर्षों की भी भूमिका रही। अठारहवीं शताब्दी में ही पंजाब में सिख, राजस्थान में राजपूत तथा महाराष्ट्र व मध्य भारत में मराठे भी एक प्रमुख राजनीतिक शक्ति के रूप में मज़बूत हो रहे थे। अठारहवीं सदी के अंतिम दौर में पंजाब में महाराजा रणजीत सिंह ने एक शक्तिशाली राज्य की स्थापना की।

इस प्रकार अठारहवीं सदी में भारत की राजनीतिक एकता विखंडित हो गई और यही राजनीतिक अस्थिरता अंतत: भारत में अंग्रेज़ी विजय का कारण साबित हुई।

Comments

Popular posts from this blog

कॉलेजियम सिस्टम

 क्या है कॉलेजियम सिस्टम  देश के उच्चतर न्यायालयों में जजों की नियुक्ति, पदोन्नति और स्थानांतरण की वर्तमान प्रणाली को कॉलेजियम सिस्टम कहा जाता है।  दरअसल कॉलेजियम 5 न्यायाधीशों का समूह है जिसमें भारत के मुख्य न्यायाधीश के अलावे सर्वोच्च न्यायालय के 4 वरिष्ठ न्यायाधीश शामिल होते हैं।  सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के नेतृत्व में बनी वरिष्ठ जजों की यह समिति उच्चतर न्यायालयों में जजों की नियुक्ति, पदोन्नति और स्थानांतरण संबंधी फैसले लेती है और राष्ट्रपति के अनुमति के लिए भेज देती है। यह ध्यान रखना आवश्यक है कि कॉलेजियम सिस्टम द्वारा जजों की नियुक्ति का प्रावधान संविधान में कहीं नहीं है। राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग (NJAC) संसद ने सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालयों में न्यायाधीशों की नियुक्ति और स्थानांतरण के लिए राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग अधिनियम बनाया था।  इस आयोग की अध्यक्षता भारत के मुख्य न्यायाधीश को करनी थी। इसके अलावे सर्वोच्च न्यायालय के ही दो वरिष्ठ न्यायाधीश, केंद्रीय विधि मंत्री और दो प्रतिष्ठित व्यक्ति भी इस आयोग का हिस्सा होते।  आय...

Once is a Mistake, Twice is a Choice

सब तो नहीं, लेकिन सब में अधिकांश एक ही काल चक्र में फंसे हैं। डर सा लगने लगता है। लगता है इस बार भी न हो पाएगा। लेकिन कार्य तो करना ही है। पिछली बार तो भूल हो गई थी। इसलिए वेबसाइट के पन्नों पर अपना नाम, रॉल नंबर न मिला। मिला होता तो अगले चक्र की लड़ाई लड़ने की तैयारी में लग जाते। इस बार फिर वहीं से शुरुआत करनी पड़ रही है जहां से पिछली बार की शुरुआत हुई थी। इस बार विजय पा लेना है। लेकिन क्या पिछली बार की कमियों पर विजय पा लिया है? एक घण्टे का भी समय खर्च किया है इस पर ? आत्ममूल्यांकन किया क्या ? इस बार खुद को पहले से बेहतर बनाना है। बेहतर तभी बन सकते हैं जब आपसे बेहतर का हाथ आपके साथ होगा। उन छोड़ देना होगा जिनके कारण पिछली बार बेहतर नहीं बन पाए। आगे बेहतर होने के लिए पिछले बेहतर से बेहतर का साथ लेना होगा। कार्य-कारण नियम से ही व्याख्या करने का प्रयास है। प्रयास की सार्थकता होनी चाहिए। नहीं तो बीत जाएगी यह ज़िंदगी पढ़ने में, कि पढ़ना क्या है ? मजबूत इरादों से सब कुछ संभव है। बोझिल मन से बोझिल जीवन ही बनेगा । हताशाओं से आगे बढ़ना होगा। एक खिड़की बनानी होगी जहां से उजाला दिखता रहे। बस डर से ...

इलेक्टोरल बॉण्ड क्या है?

इलेक्टोरल बॉण्ड एक वित्तीय प्रपत्र है जो राजनीतिक पार्टियों को चंदा देने के लिये प्रयुक्त किया जाता है। 2017-18 के बजट में पहली बार इसकी घोषणा की गई ताकि नागरिक एक वैकल्पिक तरीके से राजनीतिक दलों को चंदा दे सकें। इसके लिये नी RBI एक्ट, 1934 और आयकर अधिनियम, 1961 में संशोधन करना आवश्यक हो गया। ये बॉण्ड अधिसूचित बैंक द्वारा जारी किये जाएंगे। इन बॉण्डों को केवल चेक या डिजिटल माध्यमों द्वारा ही खरीदा जा सकता है, नकद भुगतान देकर नहीं । केवल पंजीकृत राजनीतिक दलों को ही ये बॉण्ड किसी व्यक्ति द्वारा चंदे के रूप में दिये जा सकेंगे। फिर वे पार्टियाँ इन बॉण्डों को अपने निर्दिष्ट बैंक एकाउण्ट में निश्चित समय-सीमा के भीतर रुपए में बदल सकेंगी। इन बॉण्डों के दाता की पहचान केवल बैंक के पास रहेगी, राजनीतिक पार्टियों या वोटरों के पास नहीं । इन बॉण्डों से न तो टैक्स में कोई रियायत मिलेगी और न ही किसी प्रकार का ब्याज ही मिलेगा। इलेक्टोरल बॉण्ड चुनाव फंडिंग को पारदर्शी और स्वच्छ बनाने का एक प्रयास है।