सहिष्णुता एवं प्रेम की भावना न केवल अति प्राचीन समय से ही भारतीय समाज का एक रोचक अभिलक्षण रही है, अपितु वर्तमान में भी यह एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा रही है। सविस्तार स्पष्ट कीजिये। ( 250 शब्द)
उत्तर: प्राचीनकाल से ही भारतीय समाज में सांस्कृतिक तथा धार्मिक विविधता तथा भिन्नताएँ विद्यमान रही हैं, किंतु इतनी विभिन्नताओं के बावजूद भारतीय समाज में प्रारंभ से ही एकता स्थापित रही है। ऐसा भारतीय समाज में सहिष्णुता एवं प्रेम की भावना के उपस्थित होने के कारण ही सम्भव हो पाया है।
गौरतलब है कि अति प्राचीन काल में स्थापित वैदिक धर्म, बौद्ध एवं जैन धर्मों, विभिन्न संप्रदायों तथा प्राचीन भारतीय दर्शन में सहिष्णुता एक आवश्यक अभिलक्षण के रूप में विद्यमान रही है। प्राचीनकाल में अशोक जैसे शासकों ने भी 'सभी धर्मों में सार वृद्धि' की बात की और जनता को एक-दूसरे के धर्मों को सम्मान देने का आग्रह किया और आपस में प्रेम पूर्वक रहने की सलाह दी। मध्यकाल में भक्ति और सूफी संतों ने भी सहिष्णुता और प्रेम भाव का उपदेश दिया। यही नहीं, मुगल शासक अकबर ने भी 'सुलह-ए-कुल' की नीति का पालन किया और उसके काल में धार्मिक और सामाजिक सहिष्णुता के सिद्धांत रचे गए।
स्वतंत्रता संघर्ष के समय सभी धर्मों तथा क्षेत्रों के लोगों ने समान रूप से एक साथ मिल-जुलकर आज़ादी की लड़ाई में भाग लिया। वर्तमान में भी भारत में सभी धर्मों और सांस्कृतिक मान्यताओं के लोग सहिष्णुता, प्रेम, भाईचारे, शांति और सद्भाव के साथ रह रहे हैं, जिसके कारण भारत आज भी विश्व में 'अनेकता में एकता' के अद्वितीय गुण के लिये जाना जाता है और इसी गुण ने भारत की एकता और अखंडता को अभी तक अक्षुण्ण बनाए रखा है। वर्तमान में अमेरिका जैसे देशों में नस्लीय हिंसा, पश्चिम एशिया के देशों में एकल धर्म होने के बावजूद उत्पन्न संघर्ष और अशांति इस बात के उदाहरण हैं कि विश्व के अन्य क्षेत्रों में सहिष्णुता और प्रेम भावना भारत की तुलना में कम है। भारत आज भी शरणार्थियों और पीड़ितों की आगे बढ़कर सहायता कर रहा है।
हालाँकि, गत वर्षों में देश में उत्पन्न हुए कुछ सांप्रदायिक तनावों, उत्तर-पूर्व के लोगों के साथ दुर्व्यवहार, भीड़ द्वारा हिंसा आदि की घटनाओं ने भारतीय समाज के सहिष्णुता और प्रेम के आदर्श को आहत करने का प्रयास अवश्य किया है, किंतु भारतीय संविधान और कानून इन सभी से निपटने में सक्षम साबित हुए हैं।
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